उत्तर प्रदेश जनपद उन्नाव मुरादनगर की शान जिला ब्यूरो उन्नाव
विज्ञान आश्रम और यूनिसेफ की संयुक्त पहल विद्यालय में तैयार हुए व्यवहारिक शिक्षा वीडियो
उन्नाव। समग्र शिक्षा, यूनिसेफ तथा विज्ञान आश्रम के संयुक्त प्रयास से ‘लर्निंग बाय डूइंग’ (LBD) कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाने हेतु प्रदेश के चयनित विद्यालयों में LBD मैनुअल की 60 गतिविधियों का वीडियो दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। यह वीडियो सामग्री पूरे प्रदेश में शिक्षक-छात्रों के लिए आदर्श शिक्षण मॉडल के रूप में उपलब्ध होगी, जिससे LBD लैब में समान, व्यवहारिक और गुणवत्तापूर्ण सीख सुनिश्चित हो सकेगी।
इसी क्रम में जनपद उन्नाव के विकासखंड औरास स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय रामपुर गढ़ौवा में पाँच प्रमुख प्रोजेक्ट्स का वीडियो शूट यूनिसेफ टीम द्वारा किया गया। विद्यालय का चयन उद्यमिता विकास केंद्र में प्रशिक्षक प्रदीप वर्मा के उत्कृष्ट प्रदर्शन और विद्यालय की सक्रिय एवं सुव्यवस्थित LBD लैब के आधार पर हुआ। लैब को बेहतर स्वरूप देने के लिए शिक्षक प्रदीप वर्मा और शिक्षक इंद्रपाल द्वारा लगभग 20,000 रुपये विद्यालय हित में स्व-वित्त पोषित योगदान किया गया, जिसे टीम ने सराहा।
शूट किए गए प्रोजेक्ट्स में टेलीस्कोप निर्माण, मापांकन के लिए उपयोगी उपकरण निर्माण, पीवीसी पाइप से बुक स्टैंड, शू-रैक एवं न्यूज़ पेपर स्टैंड, विद्यालय और गांव का हैंड-ड्राउन मानचित्र, तथा बिना विद्युत के सब्ज़ियों को सुरक्षित रखने हेतु सोलर ड्रायर डिवाइस शामिल रहे।
इनमें प्रदीप वर्मा ने पीवीसी मॉडल, मापांकन प्रयोग एवं सोलर ड्रायर को बच्चों के साथ निष्पादित किया, शाहे खुबा ने मानचित्र निर्माण और रमनजीत ने टेलीस्कोप निर्माण का निर्देशन किया। विज्ञान आश्रम से नवल किशोर तथा यूनिसेफ टीम से अनुज आनंद, नूर नखत, अंशुल और यश विद्यालय में उपस्थित रहे। विद्यार्थियों की सहभागिता अभिभावकों की सहमति से सुनिश्चित की गई। इन वीडियो मॉड्यूल्स का उपयोग अब पूरे प्रदेश की LBD लैब में व्यवहारिक शिक्षण को और प्रभावी बनाने हेतु किया जाएगा, जिससे छात्रों में सीख अनुभव आधारित, रोचक और स्थायी बनेगी। यूनिसेफ टीम ने विद्यालय की लैब को “उत्कृष्ट मॉडल लैब” के रूप में सराहा। बिजली बाधित होने के बावजूद बच्चों और स्टाफ का उत्साह उल्लेखनीय रहा।
गांव में यूनिसेफ टीम की तीन दिवसीय उपस्थिति चर्चा और गर्व का विषय बनी रही। “सीख तभी स्थायी बनती है, जब बच्चा उसे अपने हाथों से महसूस करे, बनाए और समझे। प्रयोग ही ज्ञान को जीवित और उपयोगी बनाता है।”


