कथा में श्रीकृष्ण के जन्म प्रसंग को प्रस्तुत कर आध्यात्मिक रहस्यों से श्रद्धालुओं को अवगत कराया गया।
मुरादनगर रीता प्रसाद
भागवत जीवन का दर्पण है। यह जीवन की एक आदर्श संहिता है। इसके केवल श्रवण मात्र से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही भागवत फलदायी होगा। नारद जी ने किस प्रकार मंत्रविद् से आत्मविद् होने का सफर तय किया। स्वयं को केवल शास्त्र ग्रंथों के पठन-पाठन तक ही सीमित नहीं रखा। उनका मंथन कर सार भाव को ग्रहण किया और फिर आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु ब्रह्मनिष्ठ गुरु के समक्ष अपनी गुहार रख दी। तब कहीं जाकर महान शास्त्र ग्रंथों का पठन-पाठन उनके जीवन में सार्थक सिद्ध हो पाया। ठीक उसी प्रकार जैसे जैसे किसी फल के रंग, रूप, आकार व स्वाद के विषय में पुस्तक से एकत्र की गई जानकारी तभी लाभप्रद सिद्ध होती है, जब जानकारी के आधार पर वैसे ही फल को ग्रहण कर लिया जाए।
इन्हीं दिव्य प्रेरणाओं के साथ ‘श्री आशुतोष महाराज जी’ की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी सुश्री पद्महस्ता भारती जी ने तृतीय दिवस का शुभारम्भ किया।
के. एन. इण्टर कॉलेज, मुरादनगर, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में दिनांक 29 नवंबर से 5 दिसम्बर 2025 तक आयोजित ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ के तृतीय दिवस भागवताचार्या महामनस्विनी साध्वी पद्महस्ता भारती जी ने श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग को प्रस्तुत किया एवं आध्यात्मिक रहस्यों से भक्त-श्रद्धालुओं को अवगत कराया। द्वापर में कंस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए प्रभु धरती पर आए और उन्होंने गोकुल वासियों के जीवन को उत्सव बना दिया। कथा के माध्यम से आज पंडाल में नंद महोत्सव की धूम देखते ही बन रही थी। जिसमें सभी नर-नारी और बच्चों ने खूब आनन्द लिया। बहुत सारे बच्चे कृष्ण के सखा बनने की इच्छा से सज-धजकर पीले वस्त्र पहन कर इस उत्सव में शामिल हुए। नन्दोत्सव की छटा अद्भुत थी! ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समूचा पंडाल ही गोकुल बन गया हो एवं सभी नर-नारी गोकुलवासी! केवल ग्वाल-बालों के रूप में सजे बच्चों ने ही नहीं बल्कि सभी आगंतुकों ने भी श्री कृष्ण जन्म के अवसर पर खूब माखन-मिश्री का प्रसाद पाया।
इस प्रसंग में छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों का निरूपण करते हुए साध्वी जी ने बताया जब-जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है, अधर्म, अत्याचार, अन्याय, अनैतिकता बढ़ती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करुणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं, श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए, साधु-सज्जन पुरुषों का परित्रण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने के लिए होता है।
साध्वी जी ने बताया कि धर्म कोई बाह्य वस्तु नहीं है। धर्म वह प्रक्रिया है जिससे परमात्मा को अपने अंतर्घट में ही जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- त्मसपहपवद पे जीम तमंसप्रंजपवद वि हवक अर्थात् परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है। जब-जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़कर मनमाना आचरण करने लगता है तो इससे धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है तब प्रभु अवतार लेकर इन बाह्य आडम्बरों से त्रस्त मानवता में ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण का प्राकट्य केवल मथुरा में ही नहीं हुआ, उनका प्राकट्य तो प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है, जब किसी तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की कृपा से उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार श्री कृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे, और इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नहीं था। ठीक इसी प्रकार ईश्वर साक्षात्कार के आभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं है। उसके विषय-विकार रूपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते रहते हैं और उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते। परन्तु जब किसी तत्वदर्शी महापुरुष की कृपा से परमात्मा का प्राकट्य मनुष्य हृदय में होता है, तो परमात्मा के दिव्य रूप ‘प्रकाश’ से समस्त अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाते हैं। विषय-विकार रूपी पहरेदार सो जाते हैं, कर्म बंधनों के ताले खुल जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसलिए ऐसे महापुरुष की शरण में जाकर हम भी ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करें तभी हम श्री कृष्ण जन्म प्रसंग का वास्तविक लाभ उठा पाएंगे।
भजन-संकीर्तन के मधुर सुरों से पंडाल मंत्रमुग्ध हो उठा और भक्तजन प्रभु नाम संकीर्तन में झूमने लगे। संस्थान के प्रतिनिधित्व में स्वामी आदित्यानंद जी (अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष, मुख्यालय, दिल्ली), साध्वी श्वेता भारती जी, साध्वी वसुधा भारती जी, साध्वी ज्योति भारती जी, साध्वी हेमा भारती जी एवं साध्वी वंदना भारती जी आदि उपस्थित रहीं। इसमें अनेकानेक भक्त श्रद्धालुओं ने एवं विशेष अतिथिगणों, जैसे - श्रीमान योगेंद्र गुप्ता जी, श्रीमान मनोज गुप्ता जी, श्रीमान सुखबीर त्यागी जी, श्रीमान राजेश सिंघल जी, श्रीमान राधे श्याम अरोड़ा जी, श्रीमान राम अग्रवाल जी, श्रीमान मनीष शर्मा जी, एवं श्रीमती दिव्या शर्मा जी आदि प्रभु कृपा की इस अमृत वर्षा का लाभ लेने हेतु बड़ी श्रद्धा व उत्साह से उपस्थित रहे।

