भक्त चिन्ता नहीं, सदा ईश्वर का चिन्तन करता है - साध्वी पद्महस्ता भारती
मुरादनगर रीता प्रसाद
के. एन. इण्टर कॉलेज, मुरादनगर, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में दिनांक 29 नवंबर से 5 दिसम्बर 2025 तक आयोजित ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ के द्वितीय दिवस भागवताचार्या महामनस्विनी साध्वी पद्महस्ता भारती जी ने भक्त प्रह्लाद के भक्ति दर्शन की व्याख्या वैज्ञानिक, सरस और समकालीन समाज के संदर्भ में प्रस्तुत की।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार भक्त प्रहलाद ने ईश्वर भक्ति के सम्मुख अपने पिता हिरण्यकशिपु द्वारा दिए जाने वाले नाना प्रकार की यातनाओं की परवाह नहीं की तथा कोई भी प्रलोभन एवं बाधा उसे भक्ति-मार्ग से विचलित नहीं कर पायी। उसे मारने की हिरण्यकशिपु ने हर सम्भव कोशिश की। उसे समुद्र की उत्ताल तरंगों में फेंका गया, मदमस्त हाथी के सामने छोड़ दिया गया, भयंकर विष दिया गया, पहाड़ की चोटी से गिराया गया, कारागार में डाला गया, अग्नि में जलाया गया।
साध्वी जी ने इस प्रसंग में बताया कि मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी भक्त घबराता नहीं, धैर्य नहीं छोड़ता! क्योंकि भक्त चिन्ता नहीं सदा चिन्तन करता है और जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वतः ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्गवद्गीता में कहते हैं -
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
अर्थात् जो भक्त ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं उसका योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं परंतु ईश्वर का चिन्तन तभी होगा जब हमारे अन्दर उनके प्रति भाव होंगे। आज कितने ही लोग ईश्वर को पुकार रहे हैं किंतु वह प्रकट क्यों नहीं होता? द्रौपदी की ही लाज क्यों बचाई, प्रहलाद की रक्षा क्यों हुई, संत मीरा या कबीर जी की तरह वह हमारी रक्षा क्यों नहीं करता? इसका कारण यह है कि हमने ईश्वर को देखा नहीं, जाना नहीं, उनकी शरणागति प्राप्त नहीं की। इसलिए हमारा प्रेम ईश्वर से नहीं हो पाया।
भले ही हमने भक्ति के नाम पर बहुत कुछ किया। प्रहलाद ने नारद जी की कृपा से परमात्मा को अंतर्घट में जाना था, जिससे उनका ईश्वर पर दृढ़ विश्वास था। इसलिए इतने कष्टों के आने पर भी वे नहीं घबराए और उनके विश्वास और प्रेम की लाज रखने के लिए ही श्रीहरि को स्वयं बार-बार आकर उनकी रक्षा करनी पड़ी और अंततः नरसिंह अवतार लेना पड़ा। हमारे शास्त्रें में भी कहा गया है कि -
जाने बिन न होई परतीती, बिन परतीती न होई प्रीति।
अर्थात् जब तक हम परमात्मा को जान नहीं लेते तब तक हमें उस पर विश्वास नहीं होता। और जब तक दृढ़ विश्वास नहीं होता, तब तक प्रेम नहीं हो सकता। आज हम परमात्मा को केवल मानते हैं उसे जानते नहीं हैं, इसलिए न तो हमारा विश्वास उन भक्तों की भाँति दृढ़ हो पाता है और न परमात्मा से प्रगाढ़ प्रेम ही हो पाता है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु ने प्रहलाद की रक्षा की, उसी प्रकार हमारी भी रक्षा हो तो हमें भी नारद जी के समान तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की शरण में जाकर उनकी कृपा से ईश्वर के तत्व स्वरूप का दर्शन कर उनके मार्ग-दर्शन में चलना होगा। तभी हम भी उन भक्तों के समान प्रभु के प्रिय बन जाएंगे और वे हमारी भी रक्षा करेंगे।
जहाँ मोह अंधकार का रूप है वहीं प्रेम प्रकाश है जो पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। प्रेम एक ऐसी नदी है जिसमें भक्त स्वयं तो भीगता ही है दूसरों को भी उसके शीतल जल से सराबोर कर देता है। भक्त प्रहलाद भी जब भक्ति रूपी नदी में हिलोरें ले रहा था, प्रभु के कीर्तन-भजन में आनंदित हो रहा था तब उसने अपने सहपाठियों को भी इससे वंचित नहीं किया।
इस कथा की मार्मिकता व रोचकता से प्रभावित होकर अपार जनसमूह के साथ-साथ शहर के विशिष्ट नागरिक भी इन कथा प्रसंगों को श्रवण करने के लिए पधारे। संस्थान के प्रतिनिधित्व में स्वामी आदित्यानंद जी (अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष, मुख्यालय, दिल्ली), साध्वी श्वेता भारती जी, साध्वी वसुधा भारती जी, साध्वी ज्योति भारती जी, साध्वी हेमा भारती जी एवं साध्वी वंदना भारती जी आदि उपस्थित रहीं। इसमें अनेकानेक भक्त श्रद्धालुओं ने एवं विशेष अतिथिगणों, जैसे - श्रीमान योगेंद्र गुप्ता जी, मनोज गुप्ता जी, सुखबीर त्यागी जी, विजय बंसल जी, विकास तेवतिया, नितिन कुमार जी, यश गर्ग जी एवं श्रीमति संगीता गर्ग जी, श्रीमान हार्दिक चौधरी एवं सुषमा चौधरी आदि ने अपनी उपस्थिति दी। श्रीमद्भागवत की कथा में भाव विभोर करने वाले मधुर संगीत से ओत-प्रोत भजन-संकीर्तन को श्रवण कर भक्त-श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर झूमने को मजबूर हो गए।



